श्री भरत झुनझुनवाला जी की नई किताब “कॉमन प्रोफेट्स ” आज देखने को मिली. कुछ अंश पढे भी.
बधाई देना चाहता हूँ श्री भरत जी को कि उन्होंने बिखर रहे या यूँ कहें- एक दूसरे के विरुद्ध लामबंद हो रहे समाजों के बीच समानताएँ’ देखनी आरम्भ तो कीं. जबकि वर्तमान विश्व में भेद- दर्शन का प्रयास अधिक किया जा रहा है.
हमारा यह मानना है कि हम सब एक ही मूल से निकली शाखा- प्रशाखाएं हैं, जो देशकाल तथा परिस्थिति से विलग सी दिखने लगी हैं. यदि हमारे बाह्य-कलेवर को भिन्न देख हमारे अंतर को भी भिन्न मान लिया गया तो भेद का भाव गहरा हो जायेगा. जो पारस्परिक अनर्थ का कारण होगा. जिसका समर्थन कोई भी विज्ञ पुरुष नहीं क्र सकता.
श्री भरत जी उस भारतीय भावना के प्रतीक बन रहे हैं जो- ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम’ को अपना ध्येय वाक्य मानती रही है.
ईशावास्यमिदं सर्वम यत्कियंच जगत्यां जगत कि वेदध्वनि तुलसीदास जी तक भी ‘सियाराममय सबजग जानी’ के रूप में सुनाई देती रही है. पर दुर्भाग्य से आज वह तिरोहित हो रही है.
श्री भरत जी जैसे लोगों के स्वर से समृद्ध होकर वह भावना पुनः दिग्दिगंत में गूंजने लगेगी और संसार भर के लोग एक दूसरे का समादर करते हुए विश्व को सही दिशा देंगे. ऐसी मेरी भावना है.
श्री भरत जी का ग्रन्थ अपने उद्देश्य में सफल हो, ऐसी भावना है.
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